पिकास अन्नद्रव्ये मिळण्याचे काही मार्ग:
- जमीन ज्यापासून बनते त्या मूळ दगडातील खनिज पदार्थांच्या झीजेमुळे,
- सेंद्रिय पदार्थाच्या विघटनामुळे.
- नत्र स्थिर करणाऱ्या जीवाणू मार्फत,
- वरून दिलेल्या रासायनिक खतांमधून उपलब्ध होतात.
खालील कारणांमुळे
जमिनीतील अन्नद्रव्ये गमावली जातात:
- निचऱ्याद्वारे विद्राव्य अन्नद्रव्यांचा ऱ्हास.
- जमिनीची धूप झाल्यामुळे.
- काही अन्नद्रव्ये वायुरूपाने जमिनीतून नाहीशी होतात.
- डीनायट्रीफिकेशन (NO३ चे N२ मध्ये रुपांतर).
- स्थिरीकरण (हा ऱ्हास नसून, पिकास अन्नद्रव्यांची अनुपलब्धता आहे)
- पिकांच्या मुळांद्वारे अन्नद्रव्य उचलल्यामुळे.
निचऱ्याद्वारे:
- नायट्रेट नत्र, युरिया, सल्फेट स्वरूपातील गंधक, बोरॉन यांचा पाण्यावाटे मोठ्या प्रमाणावर निचरा होऊन नाश / प्रदूषण होते.
जमिनीची धूप:
- सेंद्रिय पदार्थ व अन्नद्रव्यांचा नाश होतो.
काही अन्नद्रव्ये
वायुरूपाने जमिनितून नाहीशी होतात.
- वायू रूपाने सर्वाधिक मोठ्या प्रमाणात नत्राचा नाश होतो. सदर नाश टाळण्यासाठी नत्र युक्त खते जमिनीवर न देता जमिनीखालीच दिली पाहिजेत.
डीनायट्रीफिकेशन (NO३ चे N२ मध्ये रुपांतर):
- डीनायट्रीफिकेशन जिवाणूंमार्फत वनस्पतीला उपलब्ध नायट्रेट नत्र पासून अनुपलब्ध स्वरूपातील नत्र वायू मध्ये रूपांतर होते.
स्थिरीकरण:
- स्फुरद हे अन्नद्रव्य मोठ्या प्रमाणात "स्थिर" होऊन पिकाला अनुपलब्ध स्थितीमध्ये राहते. जेव्हा जमिनीचा सामू विम्ल असतो अशा वेळेला विद्राव्य स्फुरद व कॅल्शियम चा संयोग होऊन अविद्राव्य स्वरूपातील कॅल्शियम फॉस्फेट तयार होते.
- आम्ल जमिनीत सुद्धा अशाच प्रकारे अविद्राव्य अल्युमिनियम सोबत संयुग तयार होऊन हा स्फुरद अनुपलब्ध होतो.
- या व्यतिरिक्त अमोनिया व पालाश हे चिकण मातीच्या कणांमध्ये धरून ठेवले जातात.
वनस्पतीच्या वेगवेगळ्या
भागांमध्ये अन्नद्रव्ये साठवली जातात किंवा प्रत्येक पेशींमध्ये काही प्रमाणात
अन्नद्रव्यांचा वापर केलेला असतो. जीवन चक्र संपल्यावर वनस्पती जर पूर्णतः जमिनीला
परत मिळाली तर त्यातील अन्नद्र्व्यांचा पुनर्वापर होऊन जवळपास शून्य टक्के
अन्नद्रव्ये गमावली जातात. असे
चक्र निसर्गामध्ये लाखो वर्ष चालू होते. विविध प्राण्यांमार्फत वनस्पतींचे भक्षण
झाले तरी देखील त्यांची विष्ठा व देह जमिनीत जाऊन अन्नद्रव्यांचा ऱ्हास होत
नव्हता. पूर्वीच्या शेतीमध्ये काही प्रमाणात मानवी हस्तक्षेप होऊन सुद्धा या
चक्रामध्ये फारसा बदल नव्हता. आता मात्र, मोठ्या प्रमाणात अन्नधान्य शेतातून शहरात
जाते व त्यातील सेंद्रिय पदार्थ परत शेतात येत नाहीत. त्याशिवाय वनस्पतीचा इतर भाग
उदा: चारा हा सुद्धा शेताबाहेर जातो व त्या सेंद्रिय पदार्थाचा सुद्धा जमिनीला पुनर्वापर होत नाही
उसाच्या खोड्क्या,
पाचट, इत्यादी जैवभार सुद्धा शेताबाहेर जातो. कपाशीच्या पराट्या, मुळे, सरकी, सरपण
किंवा फायबर बोर्ड अथवा तेल बनवण्यासाठी शेताबाहेर जाते. गहू, भाताचे काड हे
सुद्धा जाळून/ शेताबाहेर जाऊन त्यातील सेंद्रिय पदार्थाचा नाश केला जातो. केळीच्या खोडांचा सुद्धा कंपोस्ट
करून फार शेतकरी वापर करत नाहीत.
शेताबाहेर जाणाऱ्या
सेंद्रिय पदार्थांचे कम्पोस्ट करून सेंद्रिय खताच्या रूपाने शेतात वापर केला तर
जमिनीला उत्तम सेंद्रिय पदार्थ मिळेलच शिवाय अन्नद्रव्ये उपलब्ध झाल्यामुळे पिकाची
अन्नद्रव्यांची कमतरता पुष्कळ प्रमाणात भागवता येईल व रासायनिक खतावरील खर्च कमी
करता येईल.
काही
पीकांकडून होणारी अन्नद्रव्यांची उचल:
अ. थॉम्पसन सीडलेस द्राक्षाने घेतलेल्या अन्नद्रव्यांचे प्रमाण: उत्पादन: १२.५ टन/एकर (ताजे वजनावर आधारित), मण्यांचे शुष्क वजन २५०० किलोग्रॅम. संदर्भ: द्राक्षवेली पोषण (डॉ. जगदेव शर्मा, प्रकाशन-२००६).
अन्नद्रव्यांची
उचल |
किलोग्रॅम / एकर |
|||
नत्र |
स्फुरद |
पालाश |
कॅल्शियम |
|
मण्यांमधून |
१६-२० |
२.०-3.० |
१६-२५ |
१.०-१.६० |
घडाच्या देठांमधून |
०.८-१.० |
०.१५-0.२ |
१.५-२.० |
०.७-०.८० |
अ. एकूण घडामधून |
१६.८-२१ |
२.१५-३.२ |
१७.५-२७.० |
१.७-२.४ |
काड्यांमधून |
१०.८-१३.५ |
२.०२-२.७० |
८.१०-१०.८ |
४.०५-४.७३ |
पानांमधून |
२०-३० |
४.०-६.० |
२०-३० |
८०-१०० |
पानाच्या देठांमधून |
३.०-४.० |
१.५-२.० |
७.५-१० |
१५-२० |
ब. काडी,पान, व देठ, मधून |
३३.८-४७.५ |
७.५२-१०.७ |
३५.६-५०.८ |
९९.०५-१२४.७३ |
एकूण (अ + ब) |
५०.६-६८.५ |
९.६७-१३.९ |
५३.१- ७७.८ |
१००.७५-१२७.१३ |
अन्नद्रव्यांची
उचल |
किलोग्रॅम
/ एकर |
|||
कॅल्शियम |
मॅग्नेशियम |
सोडियम |
गंधक |
|
मण्यांमधून |
१.०-१.६० |
०.७-१.० |
०.२०-०.६० |
१-१.५ |
घडाच्या देठांमधून |
०.७-०.८० |
०.१-०.१२ |
०.०३-०.०५ |
०.०५ |
अ. एकूण घडामधून |
१.७-२.४ |
०.८-१.१२ |
०.२३-०.६५ |
१.०-१.५५ |
काड्यांमधून |
४.०५-४.७३ |
४.०५-४.७३ |
१.३५-४.०५ |
०.६८-०.९५ |
पानांमधून |
८०-१०० |
१०.०-१२.० |
२.०-४.० |
४.०-७.० |
पानाच्या देठांमधून |
१५-२० |
६.०-७.५ |
१.०-२.० |
०.५-०.७५ |
ब. काडी,पान, व देठ, मधून |
९९.०५-१२४.७३ |
२०.०५-२४.२३ |
४.३५-१०.०५ |
५.२३-८.७ |
एकूण (अ + ब) |
१००.७५-१२७.१३ |
२०.८५-२५.३५ |
४.५८-१०.७ |
६.२३-१०.२५ |
अन्नद्रव्यांची
उचल |
ग्रॅम / एकर |
|||
झिंक |
लोह |
ताम्र |
मॅंगनीज |
|
मण्यांमधून |
२०-३० |
४०-८० |
०.६-3.० |
२०-३० |
घडाच्या देठांमधून |
१-१.५ |
५.०-६.० |
३.०-५.० |
3.०-४.० |
अ. एकूण घडामधून |
२१-३१.५ |
४५-१४.० |
३.६-८.० |
२३.०-३४.० |
काड्यांमधून |
२७-५५ |
४०-५५ |
७-९.५ |
६८-१०८ |
पानांमधून |
१५-२० |
१०००-२००० |
१०००-३००० |
२००-४०० |
पानाच्या देठांमधून |
५०-७५ |
५०-७५ |
१००-१५० |
१५-२०० |
ब. काडी,पान, व देठ, मधून |
९२-१५० |
१०९०-२१२७ |
११०७-३१५९.५ |
२८३-७०८ |
एकूण (अ + ब) |
११३-१८१.५ |
११३५-२१४१ |
१११०.६-३१६७.५ |
३०६-७४२ |
टीप:
- दोन्ही वेळच्या छाटण्या मधून निघालेल्या पान, देठ व वेलीचे पृथक्करण करून सापडणाऱ्या अन्नद्र्व्यांचे प्रमाण वरील तक्त्यात दिलेले आहे.
- मण्यांचे पृथक्करण करून त्यामध्ये सापडणाऱ्या अन्नद्र्व्यांचे प्रमाण दिलेले आहे.
- घडामधील मणी व देठ शेताबाहेर जात असल्यामुळे त्यांचे एकत्रित प्रमाण दिलेले आहे.
- पान, पानाचे देठ व काडी हे वैयक्तिक व्यवस्थापन पद्धतीवर अवलंबून आहे. छाटणीच्या वेळेस ते शेताबाहेर जाऊन अन्नद्रव्यांचा ऱ्हास होऊ शकतो, वा शेतकरी ते शेतातच कुजवून त्यामधील अन्नद्रव्ये पिकाला परत उपलब्ध करून देऊ शकतो.
व्दिदल पिके स्वतःस आवश्यक नत्र उपलब्ध करून घेतात. त्यातुलनेत तृणधान्य हि जास्त अन्नद्रव्ये उचलतात. विविध पिकांची अन्नद्रव्यांची गरज भिन्न असते. पीकांकडून प्राथमिक अन्नद्रव्ये (N,P,K) साधारणत: किती किलो प्रती एकर उचलली जातात हे खालील तक्त्यामध्ये दिले आहे.
ब. काही पिकांमध्ये प्राथमिक अन्नद्रव्य (N,P,K) साधारणत: किती किग्रॅ प्रती एकर उचलली जातात हे खालील तक्त्यामध्ये दिले आहे. (धान्य आणि काड)
पीक |
नत्र |
स्फुरद |
पालाश |
||||||
धान्य |
काड |
एकूण |
धान्य |
काड |
एकूण |
धान्य |
काड |
एकूण |
|
भात |
२.६ |
१५.६ |
१८.२ |
९.६ |
६ |
१५.६ |
७.२ |
३८.४ |
४५.६ |
गहू |
७२ |
३० |
१०२. |
२८ |
१४ |
४२. |
२०.८ |
३९.२ |
६०. |
मका |
३८ |
१८ |
५६. |
१६.४ |
१२ |
२८.४ |
३६ |
८ |
४४. |
ज्वारी |
३२ |
१८ |
५०. |
१९.२ |
१०.८ |
३०. |
१४ |
४२ |
५६. |
बार्ली |
३२ |
१८ |
५०. |
१५.२ |
८.८ |
२४. |
१२ |
३० |
४२. |
क. विविध
पिकांद्वारे घेतले जाणारे कॅल्शियम, मॅग्नेशियम आणि गंधक: (यामध्ये पूर्ण पिकातील मॅग्नेशियम आणि गंधकचे
प्रमाण दिलेले नसून फक्त उपयोगी भागांचा विचार केलेला आहे. संदर्भ: काली और साल्ज़
: जर्मनी)
पीक |
उत्पादन |
कॅल्शियम उचल |
मॅग्नेशियमची उचल (कि.ग्रॅ./एकर) |
गंधकाची उचल (कि.ग्रॅ./एकर) |
ऊस |
४० |
- |
३३.२ |
२४ |
कोबी |
२० |
१२.६ |
४.५ |
१८.८ |
रताळे |
१६ |
- |
१७.६ |
१२.८ |
कापूस |
०.६ |
- |
२२ |
१२ |
संत्री |
२० |
- |
१२.८ |
१२ |
टोमॅटो |
३० |
६.७५ |
६.७५ |
११.२ |
गहू |
१.३ |
०.९ |
३.१५ |
१.३५ |
मका |
४.०५ |
१.३५ |
४.०५ |
४.५ |
कांदे |
२० |
५.४ |
६.३ |
१० |
सोयाबीन |
१.०८ |
३.१५ |
३.१५ |
३.६ |
सुर्यफुल |
१.६ |
- |
- |
७.२ |
भूईमुग |
०.८ |
- |
८.४ |
६.४ |
बटाटे |
१२ |
- |
११.६ |
६ |
केळी |
१२ |
- |
५४.४ |
५.२ |
ज्वारी |
२.७ |
१.९ |
२.४ |
६.७५ |
भात |
२.४ |
- |
८ |
४ |
ल्यूसर्न |
५ |
६३ |
११.२५ |
११.२५ |
ड. विविध पिकांद्वारे सूक्ष्म अन्नद्रव्यांची होणारी सरासरी उचल (ग्रॅम/हे.): (संदर्भ:डॉ. टंडन - माती, पीक आणि खतांमधील सूक्ष्म अन्नद्रव्ये, एफडीसीओ, प्रकाशन २००३.)
पीक |
उत्पन्न (टन/हेक्टर) |
झिंक (ग्रॅम/हे) |
लोह (ग्रॅम/हे) |
मॅंगनीज (ग्रॅम/हे) |
तांबे (ग्रॅम/हे) |
बोरॉन (ग्रॅम/हे) |
मोलिब्डेनम (ग्रॅम/हे) |
भात |
१ |
४० |
१५३ |
६७५ |
१८ |
१५ |
२ |
गहू |
१ |
५६ |
६२४ |
७० |
२४ |
४८ |
२ |
मका |
१ |
१३० |
१२०० |
३२० |
१३० |
- |
- |
ज्वारी |
१ |
७२ |
७२० |
५४ |
६ |
५४ |
२ |
बटाटे |
१ |
९ |
१६० |
१२ |
१२ |
५० |
०.३ |
सोयाबीन |
२.५ |
१९२ |
८६६ |
२०८ |
७४ |
- |
- |
भूईमुग |
१.९ |
२०८ |
४३४० |
१७६ |
६८ |
- |
- |
इ. विविध कडधान्यद्वारे दिलेल्या उत्पादनाला (टन/हे.)
होणारी अन्नद्रव्यांची उचल (किग्रॅ/हे किंवा ग्रॅम/हे). (संदर्भ:डॉ. टंडन - माती, पीक आणि खतांमधील सूक्ष्म
अन्नद्रव्ये, एफडीसीओ, प्रकाशन २००३.)
पीक |
उत्पादन |
नत्र |
स्फुरद |
पालाश |
कॅल्शियम |
मॅग्नेशियम |
(टन/हे) |
(किग्रॅ/हे) |
(किग्रॅ/हे) |
(किग्रॅ/हे) |
(किग्रॅ/हे) |
(किग्रॅ/हे) |
|
हरभरा |
१.५ |
९१ |
१४ |
५७ |
२८ |
११ |
तूर |
१.२ |
८५ |
१८ |
१९ |
२३ |
१५ |
मसूर |
२.० |
११४ |
२९ |
४२ |
- |
- |
उडीद |
०.९ |
७१ |
१३ |
५९ |
- |
- |
हिरवे मुग |
१.० |
१०६ |
४८ |
७१ |
- |
- |
पीक |
उत्पादन |
गंधक |
झिंक |
लोह |
मॅगनीझ |
तांबे |
(टन/हे) |
(ग्रॅम/हे) |
(ग्रॅम/हे) |
(ग्रॅम/हे) |
(ग्रॅम/हे) |
(ग्रॅम/हे) |
|
हरभरा |
१.५ |
१३ |
५७ |
१३०२ |
१०५ |
१७ |
तूर |
१.२ |
९ |
३८ |
१४४० |
१२८ |
३१ |
मसूर |
२.० |
६ |
- |
- |
- |
- |
उडीद |
०.९ |
५ |
- |
- |
- |
- |
हिरवे मुग |
१.० |
१२ |
- |
- |
- |
- |
वरील माहिती विविध ठिकाणी केलेल्या प्रयोगावरून संकलित केलेली असून त्यांचा
वापर संदर्भ म्हणून वापर करता येईल. जमीन, हवामान, हंगाम, सिंचन सुविधा, जमिनीचा सामू,
बियाणे यासारख्या अनेक घटकांमुळे उत्पादकता व पर्यायाने जमीनीतील अन्नद्रव्ये
उचलण्याचे प्रमाण यामध्ये बदल अपेक्षित आहेत.
माती परीक्षण अहवाल करून त्यात दर्शवलेल्या कमतरते नुसार खतांचे नियोजन शेतकरी करू शकतो. शेताबाहेर जाणारा जैवभार जर कम्पोस्टिंग करून वापरला तर खर्चामध्ये बचत तर होईलच त्याशिवाय उच्च प्रतीचे सेंद्रिय पदार्थ तो जमिनीला उपलब्ध करू शकतो.
लेखाबाबत काही प्रश्न / सूचना असल्यास आपण ecoagropune@gmail.com या ई-मेलच्या माध्यमातून आम्हाला पाठवू शकता.
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